स्याही धोती पुरख पचाधा
syahi dhoti purakh pachadha
स्याही धोती पुरख पचाधा, पूरव दिसा सूं आवैला।
उत्तर दिखण पूरव पिछम, चक च्यारूं निरतावैला।
देस देस रो माल मंगावै, पई पई खरचावैला।
जळ में जाळ मही जळ पाणी, एको तार लगावैला।
कोटां ऊपर कोट चिणावै, अपरम हुकम चलावेला।
रजपूतां री रज घट जासी, ना कोई कान हलावैला।
साध घटैला मेछ वधैला, एको वाईंदो वावैला।
थे मत जाणो मील गुमावै, सुरनर लेखै लावैला।
थळियां मां सिध साध केहिजै, जांह मिलण गुरु आवैला।
भगवां टोप गळै जप माळा, थळसर जोत जगावैला।
पछै साध वधैला मेछ घटैला, गोरख गादी आवैला।
कालंग मारै कुळ वरतावै, निकळंक आण फिरावैला।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी)
आगम वचन सुणावैला।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 177)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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