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श्री राधा वंदना

shri radha vandna

यमुना प्रसाद चतुर्वेदी

यमुना प्रसाद चतुर्वेदी

श्री राधा वंदना

यमुना प्रसाद चतुर्वेदी

और अधिकयमुना प्रसाद चतुर्वेदी

    श्री राधा आराध्य सुगम गति आराधन की।

    जो अति अगम अपार है मति जहँनिगमन की।

    ज्ञान मान की खान ध्यान धारा भगतन की।

    प्रिय ‘प्रीतम’ की प्रान प्रमान पतित पावन की॥

    बाधा मेरी हरें चरन श्री राधा जी के।

    आराधन कर रहों सतत सुख साधन नीके।

    मन क्रम बच ते सेव्य रहे जे रिसि मुनि ही के।

    जिन पग नख दुति निरख लगत उडुगन बिधु फीके॥

    श्री राधा सर्वेश्वरी, राधा सरबस ग्यान।

    रसिकन निधि राधा हिये, राधा रसिकन प्रान॥

    राधा रसिकन प्रान, नित्य गति आराधन की।

    हरन सदा त्रय ताप, सकल रूजि भव बाधन की।

    साधन सुलभ सुगम्य रम्य रस रूप अगाधा।

    ‘प्रीतम’ पीवत रहत सतत भज जै श्री राधा॥

    राधा बैन रसाल, नवल राधा पिक-बैनी।

    राधा मोहिनि नवल, राधिका सहचरि श्रेनी।

    राधा सहचरि रंग बिहारिनि राधा-राधा।

    राधा ‘प्रीतम’ प्रान पियारी जै श्री राधा॥

    हीरा हेम पत्र में जड़े हैं कमनीय किधौं

    कैधौं चित्र चिंहित हैं बिद्युत बौरानी के।

    कैधौं साँत सीलता के सुंदर प्रतीक पुँज

    दिपै रहे दिव्य रूप सुख की निसानी के।

    ‘प्रीतम’ प्रवीन भक्त हीय की सरसता के

    सहज समानी ग्यानी बपु बरदानी के।

    बिचल पारी कै बिभा बिधु की बिलास हेतु

    सो ही पग-नख बंदों राधा महारानी के॥

    अँखियाँ चकोरन कौं सु साँत्वना देन हेतु

    बिरमे हैं चंद मनों नेह की निसानी के।

    कैधों जपी तपीन के तप के सु तेज पुंज

    पगन समाने आन ब्रह्म रजधानी के।

    ‘प्रीतम’ सु कवि भक्त भाव के विराम थल

    कै सोभा के सिन्धु अवगाहन हैं प्रानी के।

    तरनी के रूप, भव तारन तरन जो हैं

    सो ही पग-नखबंदों राधा ब्रजरानी के॥

    जप तप तीर्थ ब्रत नेम धर्म-कर्म पुन्य

    तीन लोक दान हूँ की पूरन प्रसाधिका।

    रिसि मुनि सिद्ध सुर साधन प्रवाहिका

    रास रस वर्द्धनी रसेश्वरी उपाधिका।

    ‘प्रीतम’ सु कवि आधि-ब्याधि की बिनासिका ह्वै

    ब्रज बन बीच बनि नित्य निरबाधिका।

    अगम निगम जग सुगम अराधिता-सी

    प्रगटी हीं ब्रज ब्रजराज प्रिया राधिका॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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