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राणाजी थें जहर दियौ म्हे जाणी

ranaji then jahar diyau mhe jani

मीरा

मीरा

राणाजी थें जहर दियौ म्हे जाणी

मीरा

और अधिकमीरा

    राणाजी थें ज़हर दियौ म्हे जाणी।

    जैसे कंचन दहत अगिन में निकसत बारह बाणी।

    लोक लाज कुल काण जगत की दई बहाय जसपाणी॥

    अपने घर का परदा कर ले मैं अबला बौराणी।

    तरकस तीर लग्यो मेरे हियरे गरक गयो सनकाणी॥

    सब संतन पर तन मन वारों चरण कँवल लपटाणी।

    मीरा को प्रभु राखि लई है दासी अपणी जाणी॥

    राणाजी, तुमने ज़हर दिया है मैं जान गई। जैसे सोना आग में तपकर सूरज की तरह चमक उठे। मैंने लोक लाज, ख़ानदान की इज़्ज़त दुनिया में पानी की तरह बहाई। हे राणा! अपने घर का पर्दा कर लो, मैं पागल औरत हूँ। सब संतों पर तन-मन वार उनके चरण कमल से लिपटी हूँ। मीरा को प्रभु ने अपनी दासी जानकर रख लिया है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मीरा वाणी (पृष्ठ 139)
    • रचनाकार : मीरा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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