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प्रभु मुख की उपमा किहि दीजै

prabhu mukh ki upma kihi dijai

रूपचंद

रूपचंद

प्रभु मुख की उपमा किहि दीजै

रूपचंद

और अधिकरूपचंद

    प्रभु मुख की उपमा किहि दीजै॥

    ससि अरु कमल दोष ब्रज दूषित, तिनकी यह सरवरि क्यौं कीजे॥

    वह जड़ रूप सदोष कलंकितु, कबहूँ बढै कबहूँ छिन छीजै॥

    वह पुनि जड़ पंकज रज रंजित, सकुचै विगसै अरु हिम भीजै॥

    अनूपम परम मनोहर मूरति, अमृत श्रवनि सिरि वसनि लहीजै॥

    रूपचंद भव तपति तपनु जनु, दरसनु देखत ज्यों सुख लीजै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी पद संग्रह (पृष्ठ 24)
    • संपादक : कस्तूरचंद कासलीवाल
    • रचनाकार : रूपचंद
    • प्रकाशन : गैंदीलाल साह जयपुर
    • संस्करण : 1965

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