विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी
wishnu wishnu tu bhan re parani
विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी, इस जीवन के होवै।
क्षण-क्षण आव घटंती जावै, मरण दिनेदिन आवै॥
पालटीयो घट कांय न चेत्यो, घाती रोल मनावै।
गुरु मुख मुरखा चढैं न पोहण, मन मुख भार उठावै॥
ज्यों-ज्यों लाज दुनी की लाजै, त्यूं-त्यूं दाब्यो दावै।
भलिया हो सो भली बुध आवै, बुरिया बुरी कमावै॥
हे प्राणी! तू इस जीव के कल्याण के हित बार-बार विष्णु-विष्णु नाम का जप कर। तेरी आयु क्षण-क्षण घटती जा रही है और दिनों-दिन मृत्यु समीप आ रही है। तेरा यह शरीर जवानी से परिवर्तित होकर वृद्धावस्था को प्राप्त हो गया है फिर भी तू क्यों नहीं चेत रहा है? मृत्यु तेरा विनाश करके ही रहेगी। हे मूर्ख! तू गुरु उपदिष्ट अथवा गुरुमुखी होकर क्यों न भवसागर से पार होने वाले जहाज़ पर चढ़ रहा है? मनमुखी होकर क्यों व्यर्थ में भार उठा रहा है? तू जैसे-जैसे संसार से लज्जित होता रहेगा वैसे-वैसे ही सांसरिक वेगों से अधिकाधिक दबता चला जाएगा। जो भला है, वह भले की सोचेगा और जो बुरा सोचता है, वह इस जन्म में बुरा ही कमाकर जाएगा।
- पुस्तक : जाम्भोजी की वाणी (पृष्ठ 303)
- रचनाकार : जाम्भोजी
- प्रकाशन : Vikas Prakashan
- संस्करण : 2001
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