मछ रूपी जद ईसर हुवो
machh rupi jad isar huwo
मछ रूपी जद ईसर हुवो, मद कीचक मन डायो।
मछ कछ वारा ओतरिया, रूप झबरकै छायो।
हाकळ मार उठ्यो है दाणू, जोस करंतो आयो।
किण रा देई देवता कहिये, किणा रो (है) भरमायो।
जसनाथ जप कै दूत धवैलो, जमड़ै साथ धंधायो।
मुर आगुनै थेह रचायो माही कळ इसड़ायो।
न मारो मेछ जिता मद कीचक, देव परवाड़ो आयो।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणायो।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 180)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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