इण धर राजा इंद भणीजै
in dhar raja ind bhanijai
इण धर राजा इंद भणीजै, सो म्हाराज कुहागूं।
राजा राव नै आगळ हुवा, जां कोई गरभ न आणूं।
इण घर पर छै चकवै हुवा, जां कोई गरभ न आणूं।
गरभ कियो उण चकवै चकवी, रैण विछोड़ो पाणूं।
गरभ कियो रतनागर सागर, नीर खारो कर डार्यो।
गरभ कियो बागां री कोयल, रंग कुरंग कर डार्यो।
गरभ कर्यो उण वन री चिरमी, मुख काळो कर डार्यो।
गरभ कियो लंकापत रावण, तोड़्यो सबळ ठिकाणूं।
मंदोदर रै कैये न मान्यो, जंभि राज गमाणूं।
वन में जाय सताया तपसी, काया अंश ज ताणूं।
सतजुग में पैळादो सीधो, जां सिव संकर जाणूं।
तेता जुग में राव हरीचंद, जां सत सील भखाणूं।
जोग दुवा पर पांचूं पांडू, जां भगवान पिछाणूं।
भगवों बानो हितकर मानो, जुग जुग जसवंत जाणूं।
भगवैं सू चोळ करी दुरजोधन, जातां नांव न जाणूं।
गरभ करै ना गेला घड़सी, ओ थारो राज न जाणूं
राज दियो म्हे लूणकरणनै, गुरु गोरख परवाणूं।
उनथ नाथां अनवी निवावां, करां जिको मन भाणू।
तीन लोक रा नाथ भणीजां, थळसर रचियो थाणूं।
काळंग मारां कुळ वरतावां, निकळंक नांव कुहाणूं।
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ (जी)
असली वेद बखाणू।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 175)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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