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नंद-सुत नित्यरस बाललीला-मगन

nand sut nityras balalila magan

नागरीदास

नागरीदास

नंद-सुत नित्यरस बाललीला-मगन

नागरीदास

और अधिकनागरीदास

    नंद-सुत नित्यरस बाललीला-मगन,

    उदधि आनन्द गोकुल कलोलें।

    गौर' अरु स्याम अभिराम भैया दोऊ,

    ललित लारकान लिये संग डोलैं॥

    भवन प्रति भवन चलि चोरहीं दूध दधि,

    रतन भूषन बदन तन उजेरैं।

    खात, लपटात ढरिकात फिरि हँसि भजत,

    चकृत ह्वै भवन निज भलन हेरैं॥

    कबहुँ गहि-गहि फिरत पूंछ बछियान की,

    किंकिनी कनक कटि मधुर बाजै।

    गोप-गोपीन मन दृगनि से खिलौना खिलत,

    मुख-कमल मुरि हँसनि भ्राजै॥

    वदन दधि-छींट-छबि, धूरि-धूसरित अंग,

    अबहिं ते मदन-गति पगनि पेलैं।

    कंठ वधना दिये पाय पैंजनि झनके,

    दास ‘नागर’-हिये-अँगन खेलैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 201)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : नागरीदास
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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