मैंने नाम रतन धन पायौ
mainne nam ratan dhan payau
मैंने नाम रतन धन पायौ।
बसत अमोलक दी मेरे सतगुरु करि किरपा अपणायो॥
जनम जनम की पूँजी पाई जग मैं सवै खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवे दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु भवसागर तारि आयो।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर हरुखि हरुखि जस गयो॥
मुझे राम की दौलत मिल गई। सतगुरु ने मेहरबानी करके मुझे अपना लिया और मुझे अनमोल चीज़ दे दी। मैंने सारी दुनिया को खोकर भी जनम-जनम की दौलत पा ली। यह दौलत न ख़र्च होती है, न उसे चोर ले जाते हैं। सच्चाई की नाव और सतगुरु उसे खेने वाला; इसलिए ज़िंदगी का समुद्र पार हो गया। मीरा ख़ुश हो-होकर प्रभु के गुण गाती है।
- पुस्तक : मीरा वाणी (पृष्ठ 112)
- रचनाकार : मीरा
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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