हमारी सब ही बात सुधारी
hamari sab hi baat sudhari
हमारी सब ही बात सुधारी।
कृपा करो श्री कुंजबिहारिनि, अरु श्रीकुंजबिहारी॥
राख्यौ अपने बृन्दाबन में, जिहि ठाँ रूप-उजारी।
नित्यकेलि-आनन्द अखंडित, रसिक संग सुखकारी॥
कलह-कलेस न व्यापै इहि ठाँ,ठौर विश्व ते न्यारी।
‘नागरिदासहि' जनम जितायो, बलिहारी, बलिहारी॥
- पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 196)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : नागरीदास
- प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
- संस्करण : 2002
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