गोकुल सबै गोपाल उपासी
gokul sabai gopal upasi
गोकुल सबै गोपाल उपासी।
जोग-अंग साधत जे ऊधो ते सब बसत ईसपुर कासी॥
यद्यपि हरि हम तजि अनाथ करि तदपि रहति चरननि रसरासी।
अपनी सीतलताहि न छाँडत यद्यपि है ससि राहु-गरासी॥
का अपराध जोग लिखि पठवत प्रेम भजन तजि करत उदासी।
सूरदास ऐसी को बिरहिन माँगति मुक्ति तले गुनरासी॥
गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव, गोकुल के सब लोग कृष्णोपासक हैं। आप तो हम लोगों को अष्टयोग की शिक्षा दे रहे हैं। अष्टांग योग की साधना करने वाले तो शंकर की नगरी काशी में निवास करते हैं। यद्यपि श्रीकृष्ण ने हमें त्याग कर अनाथ कर दिया। जीवन में बड़ी निराशा उत्पन्न हुई, फिर भी हम मन को धैर्य देकर प्रेम-राशि श्रीकृष्ण के चरणों के आनंद में डूबी रहती हैं। जैसे राहु-ग्रस्त होने पर भी चंद्रमा अपनी शीतलता के गुणों को नहीं त्यागता, ठीक उसी प्रकार इतने संकटों से ग्रस्त होकर भी हम सब कृष्ण के प्रति अपना स्नेह नहीं छोड़ पा रही हैं। हमें यह नहीं मालूम होता कि किस अपराध से वे हमें अपने पत्रों में योग संदेश लिख कर निरंतर भिजवाया करते हैं और प्रेम-भजन छोड़कर हमें वैराग्य की ओर लगा रहे हैं। ऐसी कौन विरहिणी होगी जो गुण-राशि (गुणज्ञ) श्रीकृष्ण को छोड़कर मोक्ष की कामना करती हो!
- पुस्तक : भ्रमरगीत सार (पृष्ठ 72)
- रचनाकार : आाचार्य रामचंद्र शुक्ल
- प्रकाशन : लोकभारती
- संस्करण : 2008
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