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सुख-दुख तन-मनि लावणा

sukh dukh tan mani lawna

सैन भगत

सैन भगत

सुख-दुख तन-मनि लावणा

सैन भगत

सुख-दुख तन-मनि लावणा, रघुनाथ लिखाया।

कोई टाल्यां नंई टले, नल सरिका राज वई।

जिन घट दमिता हो राणी, चीऊ लई बाज गई॥

मछ कूद्या जल पाणी, हरिचंद सरिका राज वई।

जिन घर तारामती राणी, सीता सरखी सतवंती॥

जिनका राम चंद्रजी स्वामी।

रावण की दृष्टि ले गई सुंदर बिलखाणी॥

महावीर सरखा महाबली सीता की सोध लगाई।

सनीदन मरदन हो रया, पाय तेल लंगोटा॥

अणहद बाजा बाज्या, सद्गुरु के दरबार।

सैन भगत थारी वीनती, राखो सरन लगाय॥

सुख-दुख तो तन-मन के भोग हैं। ये विधाता रघुनाथ के लिखे लेख हैं। इन्हें कोई टाल नहीं सका। नल जैसा राजा हुआ, जिनकी दमयंती जैसी सतवंती सुंदर रानी थी। पंछी पकड़ते समय नल की धोती शिकार पक्षी ले उड़े। हाथ की मृत मछलियाँ जीवित होकर जल में गायब हो गईं। भूख से दोनों व्याकुल हो गए। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र हुए। सत्य पर अडिग, जिनकी सतवंती रानी तारामती असहनीय दुख भोगा। राम की पत्नी सीता को रावण हरण करके ले गया। सुंदर सतवंती सीता बिलखती रह गई। महाबली हनुमान, जो समुद्र पार कर सीता की ख़बर लाए। शनि ने उन्हें भी पीड़ा पहुँचा दी, लाल लंगोट ही तन पर शेष रह गई। सैन कहते हैं—सद्गुरू के दरबार में अनहद नाद बज उठा है। मैं उन्हीं की शरण हूँ। सद्गुरू ही तेरी विनती सुनेंगे और अपनी शरण में ले लेंगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 297)
  • संपादक : अशोेक मिश्र
  • रचनाकार : संत सैन भगत
  • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
  • संस्करण : 2013

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