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बारहमासा (एन.सी. ई.आर.टी)

barahmasa

मलिक मोहम्मद जायसी

मलिक मोहम्मद जायसी

बारहमासा (एन.सी. ई.आर.टी)

मलिक मोहम्मद जायसी

और अधिकमलिक मोहम्मद जायसी

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

       
    (एक)
     
    अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुख सो जाइ किमि काढ़ी॥
    अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती॥
    काँपा हिया जनावा सीऊ। तौ पै जाइ होइ सँग पीऊ॥
    घर घर चीर रचा सब काहूँ। मोर रूप रँग लै गा नाहू॥
    पलटि न बहुरा गा जो बिछोई। अबहूँ फिरै-फिरै रँग सोई॥
    सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा॥
    यह दुख दगध न जानै कंतू। जोबन जनम करै भसमंतू॥
    पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।
    सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग॥
     
     
    (दो)
     
    पूस जाड़ थरथर तन काँपा। सुरुज जड़ाइ लंक दिसि तापा॥
    बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ॥
    कंत कहाँ हौं लागौं हियरै। पंथ अपार सूझ नहिं नियरें॥
    सौर सुपेती आवै जूड़ी। जानहुँ सेज हिवंचल बूढ़ी॥
    चकई निसि बिछुरैं दिन मिला। हौं निसि बासर बिरह कोकिला॥
    रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसें जिऔं बिछोही पँखी॥
    बिरह सचान भँवै तन चाँड़ा। जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा॥
    रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।
    धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख॥
     
     
    (तीन)
     
    लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़काला॥
    पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै॥
    आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ॥
    एहि मास उपजै रस मूलू। हूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू॥
    नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू॥
    टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारैं झोला॥
    केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा॥
    तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।
    तेहि पर बिरह जराइ कै, चहै उड़ावा झोल॥
     
        
    (चार)
     
    फागुन पवन झँकोरै बहा। चौगुन सीउ जाइ किमि सहा॥
    तन जस पियर पात भा मोरा। बिरह न रहै पवन होइ झोरा॥
    तरिवर झरै झरै बन ढाँखा। भइ अनपत्त फूल फर साखा॥
    करिन्ह बनाफति कीन्ह हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू॥
    फाग करहि सब चाँचरि जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी॥
    जौं पै पियहि जरत अस भावा। जरत मरत मोहि रोस न आवा॥
    रातिहु देवस इहै मन मोरें। लागौं कंत छार जेऊँ तोरें॥
    यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।
    मकु तेहि मारग होइ परौं, कंत धरै जहँ पाउ॥
     
    —‘प‌द्मावत’ से
     

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    मलिक मोहम्मद जायसी

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    स्रोत :
    • पुस्तक : अंतरा (भाग-2) (पृष्ठ 42)
    • रचनाकार : मालिक मुहम्मद जायसी
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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