अचल राज करौ, कोटि बरस लौं चिरंजीव रहौ
achal raj karau, koti baras laun chiranjiw rahau
अचल राज करौ, कोटि बरस लौं चिरंजीव रहौ,
जसुमत तेरौ लाल,
दरस देख भये निहाल, मैं जोगी सुख पायौ।
मेरे जिय आनंद भयौ, उर नां समात है।
जौलौं रवि-ससि सुमेरु-गगन पवन-पानी,
लोमस की-सी आयुर्बल होय, यह असीस दै जात है॥
डिम-डिम डमरू बजायैं, सिंगी-नाद कर मुख से गाएँ,
महादेव जू दरसन पाएँ, अलख छबि निरख,
मंद-मंद मुसकात है।
पाँच बार फेरी कर,
कछुक स्रवन लागि मंत्र धर,
‘बैजू’ नाथ कैलास के बासी प्रेम-मगन नाँचैं,
तांडव-लास्य तकधुंग-तकधुंगा, निरतत अपुने मन सुख पात है॥
- पुस्तक : बैजू और गोपाल (पृष्ठ 69)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : बैजू
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
- संस्करण : 1960
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