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अब तुम हमारी ओर निहारो

ab tum hamaarii or nihaaro

सहजोबाई

सहजोबाई

अब तुम हमारी ओर निहारो

सहजोबाई

और अधिकसहजोबाई

    अब तुम हमारी ओर निहारो।

    हमारे अवगुण पै मति जावो तुमहीं अपनो विरुद सम्हारो॥

    युग साखि तुम्हारी ऐसी वेद पुराणन गई।

    पतित उघारन तिहारो यह सुनिकै मन दृढ़ता आई॥

    मैं अजान तुम सब कुछ जानो घर अन्तर्यामी।

    मैं तो चरण तुम्हारे लागी हो कृपालु दयालुही स्वामी॥

    हाथ जोरिकै अरज करत हूं अपनावो गहि बाहीं।

    द्वार तिहारे आय गिरीहूं पौषरु गुण मोंमें कुछ नाहीं॥

    चरणहिं दास सहजिया तेरी दरशन की निधि पाऊँ।

    लगन लगी अरु प्राण अड़े हैं तुमको छोंड़ि कहौ कित जाऊँ॥

    सहजोबाई कहती हैं कि हे प्रभु, अब आप मेरी ओर देखिए। आप मेरे अवगुणों पर ध्यान मत दीजिए, अपितु अपने पतितोद्धारक यश का निर्वाह कीजिए। युगों से आपकी ऐसी प्रतिष्ठा है, अर्थात् भक्तों का उद्धार करने का यश है, ऐसा वेदों एवं पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। आपका नाम पतितोद्धारक है, यह सुनकर मेरा मन आस्था से दृढ़ हो गया है। मैं अज्ञानी हूँ और आप सब सर्वज्ञ हैं तथा प्रत्येक प्राणी के हृदय की बात जानते हैं। मैं बड़ी आशा एवं आस्था से आपके चरणों पर पड़ी हुई हूँ। अतः हे प्रभु, मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ, आप मेरा हाथ पकड़कर अपनाइये। मैं आपके द्वार पर आकर पड़ी हूँ। मुझ में कोई पुरुषार्थ या विशेष गुण नहीं है, अर्थात् मैं गुणहीन दीन-दुःखी हूँ यह मानकर मेरा उद्धार कीजिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सहजप्रकाश (पृष्ठ 102)
    • रचनाकार : सहजोबाई
    • प्रकाशन : श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बंबई
    • संस्करण : 1922

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