तुझ पर बारी हो अणघड़िया देवा।
घड़ी मूरत कूँ सब कोई सेवै, ताहि न जाणैं भेवा॥
तू अबिनासी आदू कहिये, मोहि भरोसा पड़िया।
सब संसार घड्या है तेरा, तू किन्हूँ नहीं घड़िया॥
दस औतार औतरिया तरिया, वै पणि राम न होई।
कमाई अपनी उनहूँ पाई, करता औरै कोई॥
तू पूरण ब्रह्म पुरुष प्रिथमी का, सूरति मूरति सारा।
श्रवणां सुणयां न नैनां देख्या, तेरा घड़णौंहारा॥
तू तौ आप आप तैं हूवा, तूँ देख्या उजियारा।
गोरख कहै गुरु कै सब्दां, तू ही घड़णैहारा॥
हे अजन्मे देव! मैं तुझ पर समर्पित हूँ। मूर्ति की पूजा तो सब करते हैं, परंतु उसका रहस्य कोई नहीं जानता। हे प्रभु! तू अविनाशी है और सृष्टि का मूल है। मुझे तुम पर भरोसा है। तूने ही सारे संसार की रचना की है, परंतु तेरी रचना करने वाला कोई नहीं। पुराणों में दस अवतारों के आने की चर्चा है जो इस जग से पार उतर गए, परंतु उनमें कोई भी राम (ब्रह्म) न था। उन्होंने अपने अर्जित पुण्यों का फल पा लिया, परंतु इस जग का कर्ता उनसे भिन्न कोई और ही है। हे ब्रह्म! तू इस जग में पूर्ण ब्रह्म है। तू सभी विचारों और आकारों का मूल है। तू तो अपने आप ही हुआ है। हमने तुझे प्रकाशमय देखा। गोरख कहता है कि गुरु के उपदेश से मुझे ज्ञान हुआ कि तू ही सबका रचयिता है।
- पुस्तक : श्री गोरख गीत (पृष्ठ 82)
- रचनाकार : गोरखनाथ
- प्रकाशन : laxmi prakashan
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