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अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी

awdhu aisa gyann bichari

गोरखनाथ

गोरखनाथ

अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी

गोरखनाथ

और अधिकगोरखनाथ

    अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी।

    ता मैं झिलमिल होत उजाली॥

    जरा जोग रोग व्यापै, ऐसा परखि गुरु करनां।

    तन मन सूँ जे परचा नहीं, तौ काहे को पचि मरनां॥

    काल मिट्या जंजाल छूट्या, तप करि हूवा सूरा।

    कुल का नास करै मति कोई, जै गुर मिलै पूरा॥

    सप्त धात का काया पींजरा, ता मांहि जुगति बिन सूवा।

    सतगुर मिलै तौ ऊबरै बाबू, नहिं तै परलै हूवा॥

    कंद्रप रूप माया का मंडण, अंबिरथा कांइ उलीची।

    गोरख कहै सुणौ रे भौंदू, अरंड अमी कत सींची॥

    हे अवधू! ऐसे ज्ञान का चिंतन करो जिससे झिलमिल करता ब्रह्म का प्रकाश दिखाई पड़े। इसके लिए परख कर ऐसा गुरु बनाओ कि शरीर में बुढ़ापा और योग साधना से उत्पन्न रोग फैले। यदि शरीर और मन की स्थिति की जानकारी हो तो योग−साधना के लिए प्रयत्न करके मरना उचित नहीं। यदि समय की मार मिटी, संसार की चिंताओं का जाल दूर हुआ और तप करके सिद्ध (सूरा) बन पाया तो सच्चे गुरु की प्राप्ति के अभाव में अपने परिवार का नाश नहीं करना चाहिए। यह शरीर रक्त, माँस, अस्थि आदि सात धातुओं से बना पिंजरा है और इससे स्वच्छंद होने की युक्ति जानने वाला तोता (जीव) इसमें बैठा है। बाबू! सच्चा गुरु मिले तो रक्षा (ऊबैर) हो सकती है, नहीं तो मृत्यु (परलै) होगी ही। माया द्वारा निर्मित यह शरीर कामदेव का रूप है, इसे व्यर्थ में मत उलीचो। गोरख कहता है—हे मूर्ख! सुन, अरंड को अमृत से सींचने पर मधुर फल नहीं मिलता अर्थात् गुणहीन गुरु के अभाव में मूर्ख गुरु की शिक्षा से मोक्ष की प्राप्ति होगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री गोरख गीत (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : गोरखनाथ
    • प्रकाशन : laxmi prakashan

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