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रहिये लटपट काटि दिन

rahiye laTpaT kaaTi din

गिरिधर कविराय

गिरिधर कविराय

रहिये लटपट काटि दिन

गिरिधर कविराय

और अधिकगिरिधर कविराय

    रहिये लटपट काटि दिन, बरु घामें मा सोय।

    छांह वाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥

    जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा दैहै।

    जादिन बहै बयारि, टूटि तब जरसे जैहै॥

    कह गिरिधर कबिराय छांह मोटे की गहिये।

    पातां सों झरि जाय तऊ छाहैं मा रहिये॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुण्डलियाँ गिरिधरराय (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : गिरिधर कविराय
    • प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
    • संस्करण : 1922

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