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मीठ बहुत सतनाम है

meeth bahut satnam hai

पलटू

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मीठ बहुत सतनाम है

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    मीठ बहुत सतनाम है पियत निकारै जान॥

    पियत निकारै जान मरै की करै तयारी।

    सो वह प्याला पियै सीस को धरै उतारी॥

    आँख मूँदि कै पियै जियन की आसा त्यागै।

    फिरि वह होवै अमर मुए पर उठि कै जागै॥

    हरि से वे हैं बड़े पियो जिन हरि रस जाई।

    ब्रह्मा बिस्नु महेश पियत कै रहे डेराई॥

    पलटू मेरे बचन को ले जिज्ञासू मान।

    मीठ बहुत सतनाम है पियत निकारै जान॥

    जो सतनाम से जाना जाता है वह आत्मा है। जब जिसको आत्मबोध हो जाता है तब आत्मबोध साधक का अहंकार मार देता है। आत्मबोध का रस पीते ही साधक मरने की तैयारी करता है—सारा अहंकार छोड़कर प्रपंच-शून्य केवल दशा में रहना चाहता है। आत्मबोध का प्याला वह पीता है जो अपने सिर को उतारकर रख देता है—देहाभिमान सर्वथा दूर कर देता है। मुमुक्षु को चाहिए कि वह अपने सत्स्वरूप आत्मा के बोध का प्याला आँख मूंदकर पिये, जीने-भोगने-जानने की आशा छोड़ दे। फिर तो वह अपने अभिन्न अमृत आत्मस्वरूप में स्थित होकर शाश्वत एवं अमर हो जाता है। वह अहंकारशून्य हो जाने पर अपने आप में जाग जाता है और मोह-नींद से उठ खड़ा होता है। हरि-रस पीने वाला हरि से श्रेष्ठ है—जो आत्मलीन हो गया, उसका परोक्ष परमात्मा खो जाता है। वह स्वयं परमात्मा है। ब्रह्मा, विष्णु और महादेव आत्मरस पीने से डरते हैं, क्योंकि वे जगत प्रपंच में उलझे हैं। पलटू साहेब कहते हैं कि जिज्ञासु मेरी बात को मान जाए। आत्मबोध का परिचय कराने वाले वचन ग्रहण करते ही साधक अहंकार-शून्य होकर आत्मतृप्त हो जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 16)
    • संपादक : अभिलाषा दास
    • रचनाकार : पलटू
    • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
    • संस्करण : 2012

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