बचन तो ऐसे दीजिये
bachan to aise dijiye
बचन तो ऐसे दीजिये कि जैसे दशरथ मान।
पिता पुत्र दोनों गये बचन न दीन्हों जान॥
बचन छलो बलिराज बचन कौरव ब्रत खण्डो।
बचन करन लगे कीश बचन कौरव बन मण्डो॥
बचन लाग हरिचन्द्र नीचघर नारि समर्प्यो।
बचन लाग जगदेव शीश कङ्कालिहि अर्प्यो।
बाचाबाचबैताल भनत तो करगहि जिह्वा काढ़िये।
जरजाय लक्ष बिक्रम तनय तो बोलि बचन मत पलटिये॥
- पुस्तक : कुण्डलियाँ गिरिधरराय (पृष्ठ 36)
- रचनाकार : बैताल
- प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ
- संस्करण : 1922
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