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भाग सर्वत्र फलत है

bhag sarwatr phalat hai

गिरिधर कविराय

गिरिधर कविराय

भाग सर्वत्र फलत है

गिरिधर कविराय

और अधिकगिरिधर कविराय

    भाग सर्वत्र फलत है, विद्या पौरुष सबल।

    हरि हर मिल सागर मथ्यौ, हर को मिल्यौ गरल॥

    हर को मिल्यौ गरल, हरि ने लक्ष्मी पाई।

    षट् भग हो संपन्न, भाग की कही जाई॥

    कह गिरिधर कविराय, कोउ मिल खेले फाग।

    कोउ हमेशा रोवैं, आयो आपने भाग॥

    सभी स्थानों पर मनुष्य का भाग्य ही फल देता है, उसकी विद्या या पुरुषार्थ कुछ भी काम नहीं आती। जैसे कि भगवान शिव और विष्णु दोनों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया। यद्यपि परिश्रम दोनों का बराबर था फिर भी शिव को तो ज़हर मिला और विष्णु को लक्ष्मी प्राप्त हुई। वे छहों प्रकार के ऐश्वर्यों से युक्त हो गए। बात तो यह है कि किसके भाग्य में क्या लिखा है, यह कोई नहीं बता सकता। गिरिधर कविराय कहते हैं कि कोई तो आनंद से मिलकर होली खेलते हैं और कोई सदा रोते ही रहते हैं। बात तो यह है कि मनुष्य का अपना-अपना भाग्य है। किसी के भाग्य में सुख-ही-सुख लिखा है तो किसी के भाग्य में दुःख-ही दुःख।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पुष्प-पराग (पृष्ठ 310)
    • संपादक : टेकचंद शास्त्री
    • रचनाकार : गिरिधर कविराय
    • प्रकाशन : भारती सदन, दिल्ली
    • संस्करण : 1955

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