सुदामा चरित (शरद वर्णन)
sudaama charit (sharad var.nana)
सरद समै मनभायौ कानन। स्वच्छ सलिल अरु अनिल सुहावन॥
पानी पहुने से चलि बसे। सरनि मैं सरसिज छबि सौं लसे॥
ज्यौं जोगीजन-मन बहि परै। बहुरि जोग बल निर्मल करे॥
गगन के घन जल मल भुव पंक। जंतन की संकीरन संक॥
सरद हरत भयौ सहजहि ऐसैं। कृष्ण-भक्ति आश्रय दुख जैसें॥
अपनी सरबसु दै करि मेह। राजत भये सु उज्जल देह॥
सुत बित इच्छा परिहरि जैसैं। सोहत मुनि गतकल्मष तैसैं॥
गिरिवर निर्मल जल की धार। कहूं स्रवत, कहुं नहिं निज ढार॥
जैसैं ग्यान-अमृत कहुं ग्यानी। देहि न देहि दया रस बानी॥
अलप जलनि मैं जलचर रहे। छीन होत जल नाहिन लहे॥
ज्यों नर मूढ़ छिनहि छिन माहीं। छीजत आयु सु जानत नाहीं॥
तुच्छ सलिल के पुनि ये मीन। सरद ताप तपि भये जु दीन॥
कृपन दरिद्र कुटुंबी जैसें। अजितेंद्रिय दुख भरत है तैसैं॥
सनै सनै थल-पंक मिटाई। बीरुध-तृनति की गई कचाई॥
ज्यौं मुनि धीर सरीरनि बिषैं। तजत अहंता ममता इषैं॥
सुंदर सरदागम जब भयौ। निश्चल जल समुद्र कों गयौ॥
आतम बिषैं एक चित जैसैं। त्यक्त क्रिया मुनि राजत तैसैं॥
क्यारिनु बिषैं किसाननु बारि। ठां-ठां रोके सुदिढ़ सुघारि॥
ज्यौं इंद्रिनि करि स्रवत है ग्यान। रोकि लेत जोगीजन जान॥
सरद अर्क दिन तपति जु दई। उडुप उदित है सब हरि लई॥
ज्यौं देहाभिमान कौ ग्यान। ब्रज-जुवती-दुख कौं भगवान॥
बिनु घन गगन सु सोभित तहां। उदित अमल तारागन जहां॥
जैसैं सुद्ध चित्त अति सरसै। शब्द ब्रह्म के अरथहि दरसै॥
ससि अखंड मंडल जु गगन मैं। राजत भयौ नछत्र-अगन मैं॥
ज्यौं जदुकुल करि अवनी ऐन। राजत कृष्ण कमल दल नैन॥
गो, मृग, खग, जुवती रसमई। सरद समै पुहुपवती भई॥
तिन के संग फिरत पति ऐसैं। कृष्ण क्रिपनि पाछे फल जैसैं॥
रबि के उगत कमल-कुल लसे। कुमुदन हंसे, सकुचि मन त्रसे॥
नृप-प्रताप ज्यौं निर्भय साधु। दूरत मोर भये चोर असाधु॥
सुनैजु उपमा सरद बर, यह बिसएं अध्याइ॥
सरद समै के नीर जिमि, मन निर्मल ह्वै जाई॥
- पुस्तक : अष्टछाप कवि : नंददास (पृष्ठ 89)
- संपादक : सरला चौधरी
- रचनाकार : नंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2006
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