विविहविअक्खण सत्थिहि जइ पवसीई नरु,
सुम्मई छंदु मणोहरु पायउ महुरयरु।
कहव ठाइ चउवेइहिँ वेउ पयासियइ,
कह बहुरुवि णिबद्धउ रासउ भासियइ॥
कह व ठाइँ सुदवच्छ कत्थ वर नलचरिउ,
कत्थव विविहविणोइहि भारहु उच्चरिउ।
कहव ठाइ आसीसिय चाइहिँ दयवरहिँ,
रामायणु अहिणवियइ कत्थवि कयवरिहि॥
के आयण्णहिँ वंस वीण काहल मुरउ,
कह पयवण्णणिबद्धउ सुम्मइ गीयरउ।
आयण्णहि सुसमत्थ पीणउन्नयथणिय,
चल्लहि चल्ल करंतिय कत्थवि णट्टणिय॥
नर अउव्ब बिभंविय विविहनडनाडइहिँ,
मुच्छिज्जहि, पविसंतय वेसाबाडइहिँ।
भमिहि कावि मयविंभल गुरुकरिवरगमणि,
अन्न रयणताडंकिहि परिघोलिर सवणि॥
अवर कहव णिवडुब्भरघणतुंगत्थणिहिँ,
भरिण मज्झु णहु तुट्टइ ता विंभिउ मणिहिँ।
कावि केण सम हसइ नियइमइकोइणहि,
छित्ततुच्छताभिच्छ तिरच्छिय लोइणिहि॥
अवर कावि सुवियविक्खिण विहसंतिय विमलि,
णं ससि सूर णिवेसिय रेहइ गंडयलि।
मयणवट्टटु मिंअणाहिण कस्सव पंकियउ,
अन्नह भालु (भारु) तुरक्कि तिलक आलंकियउ॥
हारु कसवि थूलावलि णिट्ठुर रयणभरि,
लुलइ मग्गु अलहंत्तउ धणवट्टह सिहरि।
गुहिर णाहिंविवरंतरु कस्सवि कुंडलिउ,
तिवल तरंग पसंगिह रेहइ मंडलिउ॥
रमणभारु गुरुवियडउ का कट्ठहि धरइ,
अइ मल्हिरउ चमक्कउ तुरियउ णहु सरइ।
जपंती महुरक्खर कस्सव कामिणिहिँ,
हीरपंतिसारिच्छ डसण झसुरारुणिहिँ॥
अवर कहव वरमुद्ध हसंतिय अहरयलु,
सोहालउ कर कमलु सरलु वाहह जुयलु।
अन्नह तरुणि करंगुलि णह उज्जल विमल,
अवर कवोल कलिज्जहि दाडिमकुसुमदल॥
भमहजुयल सन्नद्धउ कस्सव भाइयइ,
णाइ कोइ कोयंडु अणंगि चडाइयइ।
इक्कह णेवर जुयलह सुम्मइ रउ घणउ,
अन्नह रयणनिबद्धउ मेहल रुणझुणउ॥
चिक्कणरउ चंबाइहिँ लीलंतिय पवरु,
णवसर आगमि णज्जइ सारसि रसिउ सरु।
पंचमु कहव झुणंतिय झीणउ महुरयरु,
णायंं तुंबरि सज्जिउ सुरपिक्खणइ सरु॥
इम इक्किक्कह तत्थ रूवु जोयंतयह,
झसुर पिकि पय खलहि पहिहि पवहंतयह।
अह बाहिरि परिभमणि काइ जइ नीसरइ,
पिक्खि विविह उज्जाणु भुवणु तह वीसरइ॥
पथिक ने कहा हे कमलदल नयने! मेरे नगर का नाम सांबपुर है। हे चंद्र वदनी! वह नगर सुखी जनों से भरा है। सफ़ेद व ऊँची चहारदीवारी त्रिपुरों से मंडित है। वहाँ कोई मूर्ख नहीं; उस नगर के सभी जन विद्वान हैं। यदि सयाने लोगों के साथ नगर में जाया जाए तो मीठे और मन को हरने वाले प्राकृत छंद सुनाई देते हैं। कहीं चारों वेदों के ज्ञाता वेदों की व्याख्या करते हैं, कहीं विविध रूपों से निबद्ध रासक पढ़े जाते हैं। कहीं सुदवच्छ, कहीं नल दमयंती और कहीं महाभारत की कथाएँ पढ़ी जाती हैं। कहीं त्यागी ब्राह्मण आशीर्वाद देते हैं और कहीं कुशल अभिनेता रामायण का अभिनय करते हैं। कुछ लोग बाँसुरी, वीणा, काहल और मुरज सुनाते हैं, कहीं प्राकृत में निबद्ध गीत के स्वर सुने जा रहे हैं। समर्थ लोग कहीं पर उन उन्नत और पुष्ट अंगों वाली नर्तकियों को सुनते हैं जिनका कटिवस्त्र नृत्य करते समय चंचल हो उठता है। नर नट नर्तकियों को देखकर विस्मित हो जाते हैं और वेश्या-गृह में प्रवेश करते ही मूर्च्छित हो जाते हैं। मदमस्त गज के समान मंथर चाल चलने वाली नृत्यांगनाएँ और वेश्याएँ मदविह्लल होकर घूमती हैं। किसी के रत्न ताटंक हिलते हैं। कहीं एकदम उभरे हुए पुष्ट वक्षस्थलोंवाली सुंदरी भ्रमण कर रही है, स्तनाभार से कमर टूट नहीं जाती यही आश्चर्य है। कोई किसी के साथ कजरारी तिरछी आँखों से हँस-हँसकर बात कर रही हैं। कोई अन्य जब सुंदर विमल हँसी हँसती है तो उसका कपोल प्रदेश ऐसा लगता है मानो चंद्र में सूर्य प्रवेश कर गया है। किसी का मदनपट्ट मृगनाभि से चर्चित है, किसी ने अपना भाल तिरछे तिलक से शोभित कर रखा है।
किसी का बड़े मोतियों वाला हार मार्ग न पाने के कारण स्तनों के उभार पर लोटता है। किसी का गहरा नाभिविवर कुंडलाकार है और त्रिबली तरंगों से मंडलित है। कोई सुंदरी नितंब के भार को अत्यंत कष्ट से धारण कर रही है जिससे उसकी गति में आश्चर्यजनक मंथरता आ गई है। वह तेज गति से चल नहीं पाती। मधुर वाणी बोलती हुई किसी युवती के हीरक पंक्ति सदृश दाँत पान खाने के कारण लाल दिखाई पड़ते हैं। हँसती हुई किसी अन्य कामिनी के अधर, कर कमल और सुंदर भुज युगल शोभित होते हैं। दूसरी तरुणी के हाथों की अँगुलियों के नख उज्ज्वल हैं, एक अन्य के कपोल दाड़िम कुसुम दल के समान शोभित हो रहे हैं। किसी के खिंची हुई भौंहें ऐसी हैं मानो कामदेव ने कोप करके धनुष चढ़ाया हो। किसी के नूपुरों की मधुर झंकार सुनाई पड़ती है तो दूसरी की रत्नजड़ित करधनी की रुनझुन।
कोमलता से चलती हुई किसी रमणी के चमड़े के जूतों की पदचाप से मधुर शब्द होता है जैसे नव-शरद के आगमन पर सारस शब्द करते हों। कोई अन्य रमणी जब कोमल मधुर पंचम ध्वनि करती है तो मालूम होता है कि तुंबर ने देवताओं के लिए अपना स्वर सजाया है।
- पुस्तक : संदेश रासक (पृष्ठ 152)
- रचनाकार : अब्दुल रहमान
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1991
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