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तुम मै तंदुल बोए निपजहिं सहस्र गुनो

tum mai tandul boe nipajahin sahasr guno

भाई गुरुदास

भाई गुरुदास

तुम मै तंदुल बोए निपजहिं सहस्र गुनो

भाई गुरुदास

और अधिकभाई गुरुदास

    तुम मै तंदुल बोए निपजहिं सहस्र गुनो,

    देह धारि करत हैं पर उपकार जी।

    तुस में तंदुल बिरविघन लागै घुन,

    राखे रहहि चिंरकुल होत बिकारु जी॥

    तुस में निकसि होइ भग्न मलीन रूप,

    स्वाद करवाइ राधे रहंहि संसारि जी।

    गुर उपदेस गुरसिख गृह में वैरागी,

    गृह तजि बन खंड होत उधार जी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवित्त-सवैये (पृष्ठ 50)
    • रचनाकार : भाई गुरुदास जी भल्ला
    • प्रकाशन : शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर
    • संस्करण : 1956

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