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तन की सुबास बास बहत समीर तहाँ

tan ki subas bas baht samir tahan

बेनी प्रवीन

बेनी प्रवीन

तन की सुबास बास बहत समीर तहाँ

बेनी प्रवीन

और अधिकबेनी प्रवीन

    तन की सुबास बास बहत समीर तहाँ,

    अलिन की भीर अवलीन छबि ह्वै रही।

    नये-नये फीके लगे किसलै लगन आली,

    पगन की लाली द्रुम जालन सम्वै रही॥

    सुधा सुख सींचो मुखचंद की मरीचिन तें,

    बीथिन ‘प्रबीन बेनी’ चांदनी सी ब्वै रही।

    उमगे अनंत सुख कंत की मिलन जाति,

    आगे-आगे बन में बसंत ऋतु ह्वै रही॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 279)
    • संपादक : सुधाकर पांडेय
    • रचनाकार : बेनी प्रवीन
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी

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