मन रिझवार ये तो घायल सुमार बिन
man rijhvaar ye to ghaayal sumaar bin
सुंदरी कुंवरी बाई
Sundari Kunwari Bai
मन रिझवार ये तो घायल सुमार बिन
man rijhvaar ye to ghaayal sumaar bin
Sundari Kunwari Bai
सुंदरी कुंवरी बाई
और अधिकसुंदरी कुंवरी बाई
मन रिझवार ये तो घायल सुमार बिन,
सुभट करारे ज्यों संभार को संभारि कै।
ललिता कहत अरे सुनहु गँवार ग्वार,
करत उभार काहे ऐसे गाल मारि कै॥
आछे जयवार देखे सदन मुरारि जू को,
रहो रे लबार गिरिवान मुँह डारि कै॥
नाचत नचाय लीन्हें कैसे मनमाने कीन्हें,
जीत है हमारी वृषभानु को कँवारि कै॥
- पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 83)
- संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
- रचनाकार : सुंदर कुंवरी बाई
- प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
- संस्करण : 1940
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