गति सो यह कि चलै छबि सो लटकि चालु
gati so yah ki chalai chhabi so laTki chaalu
सुंदरी कुंवरी बाई
Sundari Kunwari Bai
गति सो यह कि चलै छबि सो लटकि चालु
gati so yah ki chalai chhabi so laTki chaalu
Sundari Kunwari Bai
सुंदरी कुंवरी बाई
और अधिकसुंदरी कुंवरी बाई
गति सो यह कि चलै छबि सो लटकि चालु,
उर वनमाल है विशाल लहकारी जू।
मरकी किरन कटि जीव की पुरनि दृग,
उझकि ढुरनि भौंहें भाव भरी भारी जू॥
नाचत सुलफ नट नागर रसिक छैल,
लखि रिझवारी सब जात वारी वारी जू।
चित्त की लिखी सी राधे बिबस छवी सी रही,
आँखिन की आँखें बांधी माखिन बिहारी जू॥
- पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 82)
- संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
- रचनाकार : सुंदर कुंवरी बाई
- प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
- संस्करण : 1940
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