सोवै लगे घर के बगर के केवार खुले
sowai lage ghar ke bagar ke kewar khule
शंभुनाथ मिश्र
Shambhunath mishra
सोवै लगे घर के बगर के केवार खुले
sowai lage ghar ke bagar ke kewar khule
Shambhunath mishra
शंभुनाथ मिश्र
और अधिकशंभुनाथ मिश्र
सोवै लगे घर के बगर के केवार खुले,
बीती निज जान जुग जाम जुग जामिनी।
चुपचाप चोरा-चोरी चौंकत चकत चित,
चली हित पास चित चाह भरी मानिनी॥
पैठत संकेत के निकेत शंभु सोभा देखि,
ऐसी बन बीथिन बिराजि रही कामिनी।
चामीकर चोर जानै चंपलता भौंर जाने,
चाँदनी चकोर जानै मोर जानै दामिनी॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 312)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : शंभुनाथ मिश्र
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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