सोभा पाई कुंज भौन जहाँ-जहाँ कीन्हो गौन
sobha pai kunj bhaun jahan jahan kinho gaun
बेनी प्रवीन
Beni Praveen
सोभा पाई कुंज भौन जहाँ-जहाँ कीन्हो गौन
sobha pai kunj bhaun jahan jahan kinho gaun
Beni Praveen
बेनी प्रवीन
और अधिकबेनी प्रवीन
सोभा पाई कुंज भौन जहाँ-जहाँ कीन्हो गौन,
सरस सुगंध पौन पाये मधुवनि है।
वीथिन बिथोरे मुकताल मराल पाये,
आलिन दुसाल साल पाये अनगनि है॥
रैनि पाई चाँदनी फटक सी चटक रुख,
सुख पाये प्रीतम प्रवीन बेनी धनि है।
बैंन पाये सारिका पढ़न लागी कारिका-सी,
आई अभिसारिका की चारु चिंतामनि है॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 388)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : बेनी प्रवीण
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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