सीतल सुगंध मंद बहति बयारि जहाँ
sital sugandh mand bahati bayari jahan
विजयानंद त्रिपाठी
Vijayanand Tripathi
सीतल सुगंध मंद बहति बयारि जहाँ
sital sugandh mand bahati bayari jahan
Vijayanand Tripathi
विजयानंद त्रिपाठी
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सीतल सुगंध मंद बहति बयारि जहाँ,
भृंग-पुंज गुंचित निकुंज के बसेरे में।
रति विपरीत हेत लाडिली निहोरे लाल,
सूधी हुती आय गई नागर के फेरे में॥
झूमिवे में गुजरी ललाट ते उचटि परी,
हीरकनी रूरी डाक बीदुली सो हेरे में।
‘श्रीकवि’ विराजै घनश्यामजू के हीतल पे,
गरक गई है मानो बीजुरी अँधेरे में॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 73)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : विजयानंद त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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