रेती की गढ़ी किधों मढ़ी है मसान की सी
reti ki gaDhi kidhon maDhi hai masan ki si
बनारसीदास
Banarsidas
रेती की गढ़ी किधों मढ़ी है मसान की सी
reti ki gaDhi kidhon maDhi hai masan ki si
Banarsidas
बनारसीदास
और अधिकबनारसीदास
रेती की गढ़ी किधों मढ़ी है मसान की सी,
अंदर अँधेरी जैसी कंदरा है सैल की।
ऊपर की चमक-दमक पट भूखन की,
धोखे लागे भली जैसी कली है कनैल की॥
औगुन की ओंडी महा भोंडी मोह की कनोंडी,
माया की मसूरति है मूरति है मैल की।
ऐसी देह याहि के सनेह याकी संगति सों,
है रही हमारी मति कोलू के से बैल की॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 110)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : बनारसीदास
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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