राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यो
rakhi hinduwani hinduwan ko tilak rakhyo
राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यो अस्मृति पुरान राखे बेद बिधि सुनीमैं।
राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की धरामैं धरम राख्यो गुन राख्यो गुनीमैं।
भूषन सुकबि जीति हद्द मरहट्ठन की देस-देस कीरति बखानी तव सुनी मैं।
साहि के सपूत सिवराज समसेर तेरी दिल्ली दल दाबि कै दिवाल राखी दुनी में॥
कवि भूषण कहते हैं कि हे शाहजी के सुपुत्र महाराज शिवाजी! आपने हिंदू धर्म एवं संस्कृति को नष्ट होने से बचा लिया और हिंदुओं के तिलक की रक्षा की। इतना ही नहीं, आपने हिंदू धर्मग्रंथों की रक्षा की। वैदिक मर्यादाओं का उल्लंघन होने से बचाया, अर्थात् आपने स्मृतियों, पुराणों और वेदों की रक्षा की और क्षत्रियों के क्षत्रियत्व को भी बचाया है। क्षत्रिय राजाओं की राजधानियों की सुरक्षा की। पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की और गृहिणियों के गुणों की रक्षा की। भूषण कवि कहते हैं कि आपने मराठों की अधिकार सीमा की रक्षा की, अर्थात् उनकी अधिकार सीमा को बढ़ाया। आपकी कीर्ति देश-देश में फैली। इसको मैंने सुना है। हे शाहजी के सुपुत्र शिवराज। आपकी तलवार ने दिल्ली की सेना को परास्त करके संसार में हिंदू राष्ट्र और हिंदुओं की मर्यादा की रक्षा की।
- पुस्तक : भूषण ग्रंथावली (पृष्ठ 209)
- संपादक : आचार्य विश्वानाथ प्रकाशन मिश्र
- रचनाकार : भूषण
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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