फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर
phatik silani saun sudharyo sudha mandir
फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधिको सो उफनाय उमगै अमंद।
बाहर तै भीतर लौ भीती न दिखैये देव,
दूध को सो फेन फैल्यो चाँदनी फ़रसबंद॥
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी अंबर में आभा सी उजारी लागे,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
नायिका राधा का चाँदनी से स्नात स्फटिक−सुधा मंदिर ऐसा प्रतीत होता है मानो दधि−समुद्र हो! संगमरमर के फ़र्श पर दूध जैसी लहरें लहरा रही है। उस पर शुभ−श्वेत वस्त्र धारण किए तारिका जैसी गौरवर्ण की किशोरियाँ खड़ी हैं, जिनके शरीर मोती और मल्लिका (बड़ी चमेली) के आभूषणों से जगमग हो रहे है। उनके बीच में विराज रही है—चंद्रकांति को भी लज्जित करने वाली महरानी राधा। ऊपर आकाश में भी बिल्कुल यही दृश्य है। वहाँ भी चाँदनी का सागर हिलोर ले रहा है। तारिकावृंद से घिरा चंद्र शोभा दे रहा है। कहते हैं मानो आकाश दर्पण है जिसमें पृथ्वी के इस दृश्य की झलक पड़ रही है और चंद्रमा तो निश्चित ही महारानी राधा का प्रतिबिंब मात्र है।
- पुस्तक : देव और उनका रस विलास (पृष्ठ 215)
- रचनाकार : डॉ. दीनदयाल
- प्रकाशन : नवलोक प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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