केसरि निकाई, किसलय की रताई लिए
kesari nikai, kislay ki ratai liye
केसरि निकाई, किसलय की रताई लिए,
भाँई नाहिं जिनकी धरत अलकत हैं।
दिनकर सारथी तैं सेना देखियत राते,
अधिक अनार की कली तैं आरकत हैं।।
लाली की लसनि, तहाँ हीरा की हसनि राजै,
नैना निरखत, हरखत आसकत हैं।
जीते नग लाल, हरि लालहिं ठगत, तेरे
लाल लाल अधर रसाल झलकत हैं।।
नायिका के होंठों के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि केसर की-सी सुंदरता और नवीन किसलय की लालिमा लिए हुए तेरे होंठों की परछाईं के रूप व रंग को मेहंदी भी धारण नहीं कर सकती है। तेरे होंठों की लालिमा से सूर्य का सारथी अरुण लालिमा ग्रहण करता है। तेरे अधर तो अनार की कली से भी अधिक लाल हैं। तेरे होंठों की लालिमा की शोभा में हीरों की चमक जैसा सौंदर्य विद्यमान है, जिसको देखकर मेरे नेत्र प्रसन्न होकर आसक्त हो जाते हैं, अर्थात अनुरागी बनकर रूप-छवि पर मोहित हो जाते हैं। उस दशा में प्रेम के रंग से मैं एकदम लाल (अनुरक्त) हो जाता हूँ। तेरे होंठों की लालिमा ने नगीनों (रत्नों) और लालों की ललिमा का भी हरण कर लिया है और लालों को भी उन्होंने ठग लिया है, अर्थात नग और लाल भी तेरे होंठों की लालिमा की स्वभाविक शोभा को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। तेरे लाल होंठों से तो आम के समान मधुर रस झलकता रहता है।
- पुस्तक : कवित्त रत्नाकर (पृष्ठ 32)
- रचनाकार : सेनापति
- प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
- संस्करण : 1971
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