केलि के सदन सों गहन भयो बाँसवारो
keli ke sadan son gahan bhayo banswaro
विजयानंद त्रिपाठी
Vijayanand Tripathi
केलि के सदन सों गहन भयो बाँसवारो
keli ke sadan son gahan bhayo banswaro
Vijayanand Tripathi
विजयानंद त्रिपाठी
और अधिकविजयानंद त्रिपाठी
केलि के सदन सों गहन भयो बाँसवारो,
त्रिबिध समीर सी बयारि भयी लहरी।
भूमि भई सेज सी पराग अनराग सो भो,
ग्रीवा भयो गदुआ सो झार सो भसहरी॥
'श्रीकविजू’ सँकाने विरहागि झरसाने दोऊ,
मिलि सरसाने को बखाने प्रीति गहरी।
सूर भयो चंद सो प्रकाश भयो चाँदनी सो,
शरद निशा सी भई जेठ की दुपहरी॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 74)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : विजयानंद त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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