कवि पजनेस पुन्य परम विचित्र भूमि
kawi pajnes punny param wichitr bhumi
कवि पजनेस पुन्य परम विचित्र भूमि,
केतिक फ़ानूस झाड़ जोतैं जरैं ज्वाला-सी।
करत प्रदोष व्रत पूजन किसोरी गोरी,
डेरे कर आरती उजेरे शील साला-सी॥
मुकुर नवीन तैं निहारी बर बिंद नीकी,
भिदुरावलीश दीपदान बहु बाला-सी।
मानो व्योम गंगा की गँभीर धीर धारा धँसी,
दीपक चढ़ावै देव कन्या दीप माला-सी॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 382)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : पजनेस
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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