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कर सों गहत घिरि आईं सबै आसपास

kar son gahat ghiri ain sabai asapas

घासीराम

घासीराम

कर सों गहत घिरि आईं सबै आसपास

घासीराम

और अधिकघासीराम

    कर सों गहत घिरि आईं सबै आसपास,

    चित्र की सी पूतरी श्रवन मग दै रहीं।

    कज्जल कलित चख सजल उमहि आईं,

    भरि आईं छतिहाँ अनंग रस है रहीं॥

    घासीराम सुकवि सनेही श्याम लिखी सुनि,

    प्रेम कालिंदी की वै सुरति कछु कै रहीं।

    बहुरि वियोग के हरफ़ सुनि ऊधो-मुख,

    हेरि कै सलोनी दीह साँस लै चितै रहीं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 162)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : घासीराम
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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