ज्वै रहै सुजान तिन्हैं जात परदेश कौन
jwai rahai sujan tinhain jat pardesh kaun
ज्वै रहै सुजान तिन्हैं जात परदेश कौन,
ह्वै रहे ते भोंर मिसि कीरति बिहीन के।
फूल मिसि मानों डारपानि पर पोखि रहे,
आनंद अतूल होय शोभ उमहीन के॥
कहै मणिदेव खरे देखि के पलासन को,
जानिकै भलासन बिलोकि बलहीन के।
बाढिकै सुतेज वान बधिक बसंत बली,
मानो दीन काढ़ि कै करेजे बिरहीन के॥
- पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 45)
- संपादक : परमानंद सुहा
- रचनाकार : बलदेव
- प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
- संस्करण : 1894
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