जोति सो हिये में जागी मैं तो जानी जैसी लागी
joti so hiye mein jagi main to jani jaisi lagi
जोति सो हिये में जागी मैं तो जानी जैसी लागी,
सोच तें हिये’ में लाल! लागी भारि है नई।
रसहि न जानै कहे विरह न मानै ताको,
लैही छबि छाय कहु मुरि मोहनी मई।
‘आलम’ रसाल नन्दलाल सुनि जानि-मनि
मोंहि ऐसी कठिन सूदुहुँ दिसि की भई।
तुम रिझवार प्रेम-पीर पियराने कहूँ,
अंकम की संक सुनि प्रिया पीरी है गई॥
- पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 7)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : आलम
- प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
- संस्करण : 1922
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