जीवन है सार तासों संपति को विसतार
jiwan hai sar tason sampati ko wistar
रघुनाथ बंदीजन
Raghunath Bandijan
जीवन है सार तासों संपति को विसतार
jiwan hai sar tason sampati ko wistar
Raghunath Bandijan
रघुनाथ बंदीजन
और अधिकरघुनाथ बंदीजन
जीवन है सार तासों संपति को विसतार,
विसतार तासों परिवार भौन भरिये।
‘रघुनाथ’ तासों ऊँचे नीचे को बिचार सार,
तासों सार सबही को भार हिये धरिये॥
तासों सार विद्या को प्रसार कीबो बसुधा में,
तासों सार नेह कै नवीन तासो ठरिये।
तासों सार शुद्ध भक्ति करिबो मुरारि जू की,
तासों सार काहू को जो उपकार करिये॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (पृष्ठ 270)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : रघुनाथ
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा
- संस्करण : 1990
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