ओढ़िबे को कंथा औ रमायबे को भस्म, पौन्हि
oDhibe ko kantha au ramaybe ko bhasm, paunhi
छत्रसाल
Chhatrasal
ओढ़िबे को कंथा औ रमायबे को भस्म, पौन्हि
oDhibe ko kantha au ramaybe ko bhasm, paunhi
Chhatrasal
छत्रसाल
और अधिकछत्रसाल
ओढ़िबे कों कंथा औ रमायबे कों भस्म, पौन्हि
काननि में मुद्रा, टोप सीस पै लगावैंगी।
हाथ लै कमंडली सुमंडली रचैंगी भली,
छत्रसाल, धारि जोग सिङ्गिहू बजावैंगी॥
कूबरी कों सिद्धि दैकै सुन्दरी प्रसिद्ध कीनी,
वाही के मसान बैठि वाही कों जगावैंगी।
हम तब सुख पावैंगी जब सुध पावैंगी,
सौति के मरे की, ऊधौ! माला हू फिरावैंगी॥
- पुस्तक : छत्रसाल-ग्रंथावली (पृष्ठ 27)
- संपादक : वियोगी हरि
- रचनाकार : छत्रसाल
- प्रकाशन : श्रीछत्रसाल-स्मारक-समिति, पन्ना, मध्य प्रदेश
- संस्करण : 1926
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