जैसे बिनु लोचन बिलोकिये न रूप रंग
jaise binu lochan bilokiye na roop rang
जैसे बिनु लोचन बिलोकिये न रूप रंग,
श्रवण बिहून रागु नादु न सुनीजिऐ।
जैसे बिनु जिह्वा उचरे बचनु अरु,
नासिका बिहून बास बासना न लीजिऐ॥
जैसे बिनु कर करि सकै न किरत कर्म,
चरन बिहून मौन-गौन कत कीजियै।
असन बसन बिनु धीरजु न धरे देह,
बिनु गुर-सब्द न प्रेम रस पीजियै॥
- पुस्तक : कवित्त-सवैये (पृष्ठ 208)
- रचनाकार : भाई गुरुदास जी भल्ला
- प्रकाशन : शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर
- संस्करण : 1956
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