हरषित अंग भरे हृदय उमंग भरे
harshait ang bhare hirdai umang bhare
हरषित अंग भरे हृदय उमंग भरे,
रघुबर आयो मुद चारों दिसि वै गयो।
सुंदर सलोने शुभ्र सुखद सिंहासन पै,
जनक सप्रेम जाय आसन जबै दयो॥
रामप्रिया जानकी तथैव पुरवासी मुख,
पंकज कुमुद सम दूजे नृप ह्वै गयो।
मानो मणि मंडित शिखर पै मयंक तापै,
मंजु दिनकर प्रात प्राची सों उदय भयो॥
- पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 105)
- संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
- रचनाकार : रामप्रिय
- प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
- संस्करण : 1940
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