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ईहै प्रभुता को जो किसन प्रभु ताको त्यागै

ihai prabhuta ko jo kisan prabhu tako tyagai

किशन

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ईहै प्रभुता को जो किसन प्रभु ताको त्यागै

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    ईहै प्रभुता को जो किसन प्रभु ताको त्यागै,

    छरी विभूति तो बिभूति कहा धारी है।

    जौलौं भग तजी नाहिं तौलौं भगत जी नाहिं,

    काहे को गुसांई जो गुसांई सौं यारी है॥

    काहे को बिराहमन जाको बिराह मन,

    कहा पीर जो पै पर-पीर बिचारी है।

    कैसो वह जोगी जन जाको विजोगी मन,

    आसन ही मार जान्यो आस नहीं मारी है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 207)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : किशन
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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