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छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान

chhutat kaman ban bandukaru kokban

भूषण

भूषण

छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान

भूषण

और अधिकभूषण

    छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान मुसकिल होत मुरचारनहू की ओट में।

    ताही समै सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो दावा बाँधि द्वेषिन पै बीरन लै जोट में।

    भूषन भनत तेरी हिम्मति कहाँ लौं कहौं किम्मति इहाँ लगि है जाकी भटझोट में।

    ताव दै दै मूछन कगूरन पै पाँव दै दै घाव दै दै अरिमुख कूदे परैं कोट में॥

    कवि कहता है कि जिस समय महाराज शिवाजी और औरंगज़ेब की सेना की बीच भयंकर युद्ध हो रहा था और दोनों ओर की सेनाएँ धनुष, बंदूक़ और बाणों की वर्षा कर रही थीं कि मोर्चे की ओट में भी उनसे बचने में कठिनाई हो रही थी। उस समय वीर शिवाजी ने उत्साहपूर्वक ललकारते हुए ओजस्वी वाणी में अपनी सेना को आदेश दिया कि आक्रमण करो तो मरहठा वीरों ने शत्रुओं पर आक्रमण करके हाहाकार मचा दिया और दावानल की भाँति उनका संहार कर दिया। कवि भूषण कहते हैं कि ऐसे पराक्रमी महाराज शिवराज आपके साहस के बल पर मराठा सैनिक मूँछों को ऐंठते हुए क़िलों के कंगूरों पर पैर रखकर और शत्रुओं के मुखों पर घाव दे-देकर परकोटे में कूद पड़ते हैं और क़िले पर अधिकार कर लेते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भूषण ग्रंथावली (पृष्ठ 208)
    • संपादक : आचार्य विश्वानाथ प्रकाशन मिश्र
    • रचनाकार : भूषण
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2017

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