छल कै लै आई सखी नवल तिया को बन
chhal kai lai i sakhi nawal tiya ko ban
छल कै लै आई सखी नवल तिया को बन,
आये ना कन्हाई मन करत बिचार सी।
देवकीनंदन कहै सोन जुही फूलन में,
चंपा तरु फूलन में मिलि जात हार सी॥
जिय में करत चित हेरत हरेई हरे,
गुलसब्बो चाँदनी में देखत बहार सी।
मौलसिरी जालन में चंपा तरु आलन में,
मौलसिरी डारन में डोलै लगि डार सी॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 299)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : देवकीनंदन
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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