चहकि चकोर उठे सोर करि भौंर उठे
chahki chakor uThe sor kari bhau.nr uThe
चहकि चकोर उठे सोर करि भौंर उठे,
बोलि ठौर ठौर उठे कोकिल सुहावने।
खिलि उठी एक बार कलिका अपार हलि,
हलि उठे मारुत मरंद सरसावने॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि में,
पलटि गए धौं कब तरु मनभावने।
उमंगि अनंद अँसुवान लौं चहुँधा लागे,
फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने॥
- पुस्तक : रीतिमुक्त कवि : नया परिदृश्य (पृष्ठ 168)
- संपादक : रामफेर त्रिपाठी
- रचनाकार : द्विजदेव
- प्रकाशन : मधु प्रकाशन, इलाहाबाद
- संस्करण : 1982
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