भगत-बछलु, शुनि होत हौं निरास हृदय
bhagat bachhalu, shuni hot haun niras hirdai
भाई गुरुदास
Bhai Gurudas
भगत-बछलु, शुनि होत हौं निरास हृदय
bhagat bachhalu, shuni hot haun niras hirdai
Bhai Gurudas
भाई गुरुदास
और अधिकभाई गुरुदास
भगत-बछलु, शुनि होत हौं निरास हृदय,
पतित-पावन, सुत्ति आसा उरि धारि हौं।
अंतरजामी सुनि कंपत हौं, अंतर्गति,
छीन कै दयालु सुनि भय भरम टारी हौं॥
जलधर संगम कै अफल सेंबुल द्रुम,
चंदन सुगंधि संबंध मलहार हौं।
अपनी करनी कर नरक हूँ न पावौं ठौर,
तुमरै विरद करि आसरो सम्हार हौं॥
- पुस्तक : कवित्त-सवैये (पृष्ठ 197)
- रचनाकार : भाई गुरुदास जी भल्ला
- प्रकाशन : शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर
- संस्करण : 1956
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