हूँ वे मुश्ताक़ तेरी सूरत का नूर देख
hoon we mushtaq teri surat ka noor dekh
कुलपति मिश्र
Kulpati Mishra
हूँ वे मुश्ताक़ तेरी सूरत का नूर देख
hoon we mushtaq teri surat ka noor dekh
Kulpati Mishra
कुलपति मिश्र
और अधिककुलपति मिश्र
हूँ वे मुश्ताक़ तेरी सूरत का नूर देख,
दिल भरि पूरि रहैकहने जबाब सों।
मिहर का तालिब फ़क़ीर है मिहरबान,
चातक ज्यों जीवता है स्वांति वारा आब सों॥
तू तौ अयानी यह ख़ूबी का ख़ज़ाना तिसे,
खोलि क्यों न दीजे सेर कीजिए सबाब सों।
ढेर की न ताब जान होत है कबाब बोल,
ह्याती का आब बोलो मुख महताब सों॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 231)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : कुलपति मिश्र
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.