बरन बरन तरु फूले उपबन बन
baran baran taru phuule upban ban
बरन बरन तरु फूले उपबन बन,
सोई चतुरंग संग दल लहियत है।
बंदी जिमि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं,
गुंजत मधुप गान गुन गहियत है।।
आवै आस-पास पुहुपन की सुबास सोई
सोंधे के सुगंध माँझ सने रहियत है।
सोभा कौं समाज, सेनापति सुख-साज, आज
आवत बसंत रितुराज कहियत है।।
संत ऋतु में वनों और उपवनों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों से वृक्ष-लता आदि सुशोभित हैं, साथ ही उन पर रंगीन पत्ते दिखाई देते हैं। कोयलें इस तरह कूक रही हैं जैसे बंदीजन वीरों का यशोगान किया करते हैं। भौंरे गुंजारकर गुणगान करते-से प्रतीत होते हैं। आस-पास फूलों की सुंगध आती रहती है। वे जैसे सोंधी-सोंधी सुगंध से घिरे रहते हैं। ऐसा लगता है कि ऋतुराज वसंत एक राजा की तरह आ रहा है और प्राकृतिक शोभा का साज सजाए हुए उनका सेनापति भी उनके साथ आ गया है।
- पुस्तक : कवित्त रत्नाकर (पृष्ठ 54)
- रचनाकार : सेनापति
- प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
- संस्करण : 1971
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